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मिरगी (Epilepsy) का दौरा पड़ना मस्तिष्क संबंधी रोग है। इस रोग में अचानक ही शरीर में ऐंठन होने लगती है। मुंह से झाग आने लगता है और रोगी थोड़ी ही देर में अचेतनता और बेहोशी की स्थिति में आ जाता है। कुछ ही देर में दौरे का असर समाप्त हो जाने पर मनुष्य सामान्य हो जाता है।यह रोग संसार की कुल जनसंख्या के लगभग 0.5% लोगों को है। महिलाओं की अपेक्षा मिरगी का दौरा पुरुषों को अधिक पड़ता है। औसतन इस रोग से पीड़ित पुरुषों और महिलाओं का अनुपात 10 : 8 है।
अभी तक डॉक्टर इस रोग के कारण को पूरी तरह नहीं समझ पाए हैं, लेकिन ऐसा अनुमान किया जाता है कि इस थोड़ी देर के लिए मस्तिष्क की क्रिया असामान्य हो जा है। मस्तिष्क के एक विशेष क्षेत्र में रासायनिक परिवर्तन के प्रति अधिक संवेदनशीलता पैदा हो जाती है। कुछ लोगों को आग देखकर दौरा पड़ता है, तो कुछ को पानी देखकर। कुछ ऐसे भी रोगी देखे गए हैं, जिन्हें अचानक किसी मानसिक आघात से दौरा पड़ जाता है। कुछ लोगों को विशेष गंध से भी मिरगी का दौरा पड़ जाता है। अचानक सिर में चोट लगने, तेज बुखार आने, रक्त संचार की असामान्यता और दिमाग में रसौली होने के कारण भी मिरगी का दौरा पड़ जाता है।
इस रोग का मानसिक विकास से कोई संबंध नहीं है। इस रोग से पीड़ित संसार में कई महापुरुष ऐसे हुए हैं, जो अपनी बुद्धिमत्ता से संसार पर अमर छाप छोड गए हैं। वेलिंगटन का ड्यूक, रिचार्ड वेनगर, लुई हेक्टर बेरीलिओग, फ्योदोर दास्ताएव्स्की ऐसे ही व्यक्ति थे। मिरगी का रोगी दौरा पड़ने के बाद होश में आने पर अपने सभी काम सामान्य ढंग से कर सकता है। । मिरगी के रोगी को, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, एक सामान्य व्यक्ति समझना चाहिए। वह अपंग या अयोग्य नहीं होता।वह शिक्षा प्राप्त कर सकता है। नौकरी या उद्योग कर सकता है। वह विवाह कर बच्चों को भी जन्म दे सकता है।आज चिकित्सा विज्ञान ने ऐसी औषधियां विकसित कर ली हैं, जो मिरगी के दौरे को रोक सकती है।
ये औषधियां रोगी को बहुत समय तक खानी पड़ती हैं। कछ रोगियों को तो जीवन भर दवाएं लेनी पड़ती है। इन औषधियों से रोगी सामान्य जीवन व्यतीत कर सकता है। जिस व्यक्ति को मिरगी का दौरा पड़ता है, उसे मस्तिष्क विशेषज्ञ की राय लेना अति आवश्यक है। यदि रोग के कारण का पता लग जाता है, तब रोगी ठीक भी हो जाता है।
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