कुत्ता मनुष्य का एक वफादार दोस्त माना जाता है, लेकिन जब यह पागल हो जाता है, तब इतना खतरनाक हो जाता है कि बिना उचित इलाज के इसके काटने से मृत्यु होजाती है। क्या तुम जानते हो कि कुत्ता पागल क्यों हो जाता है?
कुत्ता जब रैबीज़ नामक बीमारी का शिकार होता है, तब पागल हो जाता है।यह बीमारी एक प्रकार के विषाणु (virus) द्वारा होती है। वायु से या किसी दूसरे जंगली जानवर के काटने या उसका जूठा खाने से रेबीज के विषाणु किसी जख्म द्वारा कुत्ते के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। ये विषाणु बंदूक की गोली जैसे आकार के होते हैं। इनका व्यास 70 मिलीक्रांस और लंबाई 210 मिलीक्रांस होती है। ये विषाणु चार से छ: सप्ताह के अंदर अपना असर, दिखाना शुरू करते हैं।
इस दौरान कुत्ता सुस्त रहता है, फिर उसे बुखार आता है और खाने-पीने में उसकी रुचि नहीं रहती। जब ये विषाणु सारेशरीर में फैलकर मस्तिष्क पर हमला करते हैं, तब कुत्ता क्रोधित होने लगता है। उसके मुंह में लार आने लगती है, जिसमें ये विषाणु भी होते हैं। कुत्ता गुर्राना और भौंकना शुरू कर देताहै। इस बीच कुत्ता किसी भी व्यक्ति को काट सकता है। ऐसी स्थिति में कुत्ते को पागल कहा जाता है। कुछ कुत्ते इस बीमारी से पागल नहीं होते वरन उनको लकवा हो जाता है। इसे डेब रैबीज कहते हैं।
जब पागल कुत्ता मनुष्य को काटता है, तब कुते लार में मौजूद विषाणु काटे हुए स्थान से मनुष्य के शरी, में प्रवेश कर जाते हैं। इससे शुरू में मनुष्य को मानसिक कमजोरी और बेचैनी महसूस होती है। उसे बुखार आता है। वह चिंतित रहने लगता है। उसे नींद नहीं आती और डर महसस होने लगता है। गले की मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं और निगलने या पीने की क्रिया में उसे का होने लगता है। वह पानी से भयभीत होने लगता है, इसलि इस बीमारी को हाइड्रोफ़ोबियाभी कहते हैं। मनुष्य में इस बीमारी के लक्षण एक सप्ताह से लेकर तीन माह में प्रकट होने लगते हैं।
यदि कुत्ते ने गर्दन, मुंह या सिर में काटा है, तब कम समय में ही लक्षण उभर आते हैं। यह एक जानलेवा बीमारी है, जिससे बहुत जल्दी रोगी की मृत्यु हो सकती है। अत: पागल कुत्ते द्वारा काटे हुए स्थान को तुरंत धोकर, तीन दिन के भीतर रेबीजरोधी टीके लगवा लेना चाहिए।कुत्ते पर भी निगाह रखनी चाहिए। कुत्ता यदि पांच दिन में न मरे तब उसे पागल नहीं मानना चाहिए और इलाज रोक देना चाहिए, क्योंकि पागल कुत्ता पांच दिन में अवश्य मर जाता है। रैबीज़ के विषाणु लोमड़ी, भेड़िया, गीदड़, बिल्ली और चमगादड़ आदि पर भी आक्रमण करते हैं, लेकिन इन जानवरों से रैबीज़ के विषाणु मनुष्य के शरीर में बहुत कम प्रवेश कर पाते हैं, क्योंकि मनुष्य इनके अधिक संपर्क में नहीं आता।
कुत्ता जब रैबीज़ नामक बीमारी का शिकार होता है, तब पागल हो जाता है।यह बीमारी एक प्रकार के विषाणु (virus) द्वारा होती है। वायु से या किसी दूसरे जंगली जानवर के काटने या उसका जूठा खाने से रेबीज के विषाणु किसी जख्म द्वारा कुत्ते के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं। ये विषाणु बंदूक की गोली जैसे आकार के होते हैं। इनका व्यास 70 मिलीक्रांस और लंबाई 210 मिलीक्रांस होती है। ये विषाणु चार से छ: सप्ताह के अंदर अपना असर, दिखाना शुरू करते हैं।
इस दौरान कुत्ता सुस्त रहता है, फिर उसे बुखार आता है और खाने-पीने में उसकी रुचि नहीं रहती। जब ये विषाणु सारेशरीर में फैलकर मस्तिष्क पर हमला करते हैं, तब कुत्ता क्रोधित होने लगता है। उसके मुंह में लार आने लगती है, जिसमें ये विषाणु भी होते हैं। कुत्ता गुर्राना और भौंकना शुरू कर देताहै। इस बीच कुत्ता किसी भी व्यक्ति को काट सकता है। ऐसी स्थिति में कुत्ते को पागल कहा जाता है। कुछ कुत्ते इस बीमारी से पागल नहीं होते वरन उनको लकवा हो जाता है। इसे डेब रैबीज कहते हैं।
जब पागल कुत्ता मनुष्य को काटता है, तब कुते लार में मौजूद विषाणु काटे हुए स्थान से मनुष्य के शरी, में प्रवेश कर जाते हैं। इससे शुरू में मनुष्य को मानसिक कमजोरी और बेचैनी महसूस होती है। उसे बुखार आता है। वह चिंतित रहने लगता है। उसे नींद नहीं आती और डर महसस होने लगता है। गले की मांसपेशियां शिथिल हो जाती हैं और निगलने या पीने की क्रिया में उसे का होने लगता है। वह पानी से भयभीत होने लगता है, इसलि इस बीमारी को हाइड्रोफ़ोबियाभी कहते हैं। मनुष्य में इस बीमारी के लक्षण एक सप्ताह से लेकर तीन माह में प्रकट होने लगते हैं।
यदि कुत्ते ने गर्दन, मुंह या सिर में काटा है, तब कम समय में ही लक्षण उभर आते हैं। यह एक जानलेवा बीमारी है, जिससे बहुत जल्दी रोगी की मृत्यु हो सकती है। अत: पागल कुत्ते द्वारा काटे हुए स्थान को तुरंत धोकर, तीन दिन के भीतर रेबीजरोधी टीके लगवा लेना चाहिए।कुत्ते पर भी निगाह रखनी चाहिए। कुत्ता यदि पांच दिन में न मरे तब उसे पागल नहीं मानना चाहिए और इलाज रोक देना चाहिए, क्योंकि पागल कुत्ता पांच दिन में अवश्य मर जाता है। रैबीज़ के विषाणु लोमड़ी, भेड़िया, गीदड़, बिल्ली और चमगादड़ आदि पर भी आक्रमण करते हैं, लेकिन इन जानवरों से रैबीज़ के विषाणु मनुष्य के शरीर में बहुत कम प्रवेश कर पाते हैं, क्योंकि मनुष्य इनके अधिक संपर्क में नहीं आता।
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