कागज़ मिस्री भाषा के पेपाइरस (Papyrus) शब्द से बना है। अंग्रेजी में इसे पेपर (Paper) कहते हैं। प्राचीन मिस्र के लोग पेपाइरस नामक पौधे से एक प्रकार का कागज बनाते थे।
कागज का निर्माण सबसे पहले चीन में त्साई लुन (Tsai Lun) नाम के व्यक्ति ने सन 105 में किया। वह चीनी सम्राट का कृषि मंत्री था। कागज़ निर्माण का वास्तविक विकास 15वीं शताब्दी में यूरोप में हुआ। सन 1799 में लुईस राबर्ट (Lois Robert)ने कागज़ बनाने की मशीन बनाई। आजकल अधिकतर कागज़ लकड़ी से बनाया जाता है। यह लकड़ी चीड, यूकेलिप्टस, चिनार,भोजपत्र, अखरोट आदि के पेड़ों से प्राप्त की जाती है।
कागज बनाने के कारखानों में इस लकड़ी को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर बड़े-बड़े बरतनों में कुछ रासायनिक पदार्थों और पानी के साथ उबाला जाता है। उबालने के बाद यह लकडी मुलायम गूदे में बदल जाती है। इसको हम लुगदी (Pulp) कहते हैं । लुगदी से अशुद्धियां दूर करने के लिए इसे छाना जाता है। इसके बाद कुछ रासायनिक पदार्थों द्वारा इसका रंग उड़ाकर इसे सफेद बनाया जाता है। फिर इस लुगदी में चीनी मिट्टी और चाक मिला दी जाती है।
ऐसा करने से बनने वाले कागज़ की चिकनाहट बढ़ जाती है। इन सब पदार्थों के मिश्रण को ‘स्टफ' और 'स्टॉक' कहा जाता है।इस मिश्रण को अब एक मशीन में डाला जाता है, जिस पर बेल्ट के रूप में महीन तारों से बनी एक जाली चलती रहती है। इस जाली पर बारीकी से फैले मिश्रण में से पानी ।बाहर निकलने लगता है और लकड़ी के छोटे-छोटे रेशे पास-पास आने लगते हैं, जिनसे कागज की पतली परत बननी शुरू हो जाती है। अब इस परत को बड़े-बड़े रोलरों द्वारा दबाया जाता है, जिसमें रेशे और भी पास-पास आ जाते हैं, जो गीले कागज का रूप धारण कर लेते हैं। इसके बाद इस कागज़ को भाप से गर्म रोलरों द्वारा सुखाया जाता है।
अंत में स्टील के बड़े-बड़े चिकने बेलनों के नीचे से गुजारकर इस कागज पर चिकनाहट पैदा की जाती है। इस प्रकार से बने कागज़ के बड़े-बड़े रोल बना लिए जाते हैं। इन्हीं रोलों से कागज़ को इच्छानुसार आकार में काटकर बाजार में बिकने के लिए भेज दिया जाता है। | कुछ सस्ते किस्म का कागज गत्ते और जूट, चिथड़ों, रद्दी कागज़ और घास-फूस से भी बनाया जाता है। इन पदार्थों से भी कागज बनाने का वही तरीका है, जो ऊपर बताया गया है|
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