प्राचीनकाल से लेकर आज तक धन मानव के आकर्षण का केंद्र रहा है। संसार में धन सभी के लिए महत्त्वपूर्ण है।आज हम धन को मुद्राओं अर्थात सिक्कों (Coins) करेंसी नोटों (Currency Notes) के रूप में ले-देकर तरह-तरह की चीजें खरीदते या बेचते हैं।
क्या आप जानते हो कि इनका चलन कब और कैसे हुआ?
मानव सभ्यता की शुरुआत में जब लोग कोई चीज खरीदना चाहते थे, तब उसके बदले में दूसरी चीज देते थे।
उदाहरण के लिए अगर एक बरतन बनाने वाला कुम्हार किसी किसान से चावल खरीदता, तब उसके बदले में उसे बरतन देता था। किसान को बरतनों की जरूरत पड़ती थी, इसलिए वह उन्हें ले लेता था।
खरीदने-बेचने के इस तरीके को विनिमय प्रणाली (Barter System) कहते थे। इसमें वस्तुओं के बदले वस्तुओं का लेन-देन चलता था। उस काल में वस्तुएं ही धन या मुद्रा के रूप में प्रयोग होती थीं।
जैसे-जैसे व्यापार बढ़ने लगा। विनिमय की यह प्रणाली नई जरूरतों को पूरा करने में असफल सिद्ध होती गई। ऐसी स्थिति में ऐसी मुद्रा की जरूरत महसूस की जाने लगी,जिससे व्यापारिक आवश्यकताओं के अनुरूप खरीदबिक्री की जा सके। क्योंकि वस्तुओं को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता था | अधिक मात्रा में वस्तुओं को सुरक्षित रूप से जमा नहीं जा सकता था और भिन्न-भिन्न वस्तुओं का ठीक मल्य निर्धारित नहीं हो सकता था।इसलिए लोगों ने चीजो के खरीदने-बेचने के लिए प्रतीकात्मक वस्तुओं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
अमेरिका के रेड इंडियंस शंख के खोल, फिजी के निवासी ह्वेल मछली के टन उत्तरी अमेरिका के लोग तंबाकू का उपयोग वस्तुओं के लेन-देन के लिए करते थे। प्राचीनकाल में रोम के सैनिकों को वेतन के रूप में नमक दिया जाता था।
मुद्रा (Coins) के रूप में धन कब और किस देश में सबसे पहले प्रचलित हुआ, इस बारे में बिल्कुल सही रूप में कहना कठिन है।
भारत के प्राचीन ग्रंथों में स्वर्ण मुद्रा (सोने का सिक्का) शब्द का उपयोग बार-बार हुआ है।
इससे स्पष्ट है कि ईसा से कई हजार वर्ष पहले भी भारत में स्वर्ण मुद्राओं का उपयोग किया जाता था।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में मिले प्राचीन सुंदर नगरों के अवशेषों और वस्तुओं को देखकर लगता है कि उस समय के भारतीय व्यापारी बड़ी-बड़ी नौकाओं से समुद्री मार्ग द्वारा विदेशों तक व्यापार करते थे।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि वे भी किसी न किसी प्रकार की मुद्रा का उपयोग जरूर करते रहे होंगे।
प्राप्त प्रमाणों के अनुसार एशिया में लीडियन्स (Lydians) द्वारा ईसा से 800 वर्ष पूर्व धातुुओ के टुकड़ो का उपयोग मुद्रा के रूप में होता था। कुछ लोगों का विश्वास है कि इससे भी पहले चीन के लोग मुद्राओं का उपयोग करते थे। वस्तुओं की जगह मुद्राओं को सभी लोग पसंद करते थे क्योंकि उन्हें रखना और ले जाना सरल था।
शुरू-शुरू की मुद्राओं का आकार खुरदरा और असमान रूप का था और उनके ऊपर खुरदरी डिजाइन बनी होती थीं। उनका मल्य उस धातु के अनुसार होता था, जिस पर वे बनी होती थीं। ज्यादातर सोने, चांदी और तांबे की धातुओं के सिक्के बनाए ना जाते थे, क्योंकि ये धातुएं मूल्यवान और टिकाऊ होती थीं।
चीन में कागज की मुद्रा का उपयोग 9वीं शताब्दी से शुरू हो गया था, लेकिन यह यूरोप में 17वीं शताब्दी में जाकर विकसित हुआ। इसके बाद धन के लेन-देन को सरल बनाने के लिए भिन्न-भिन्न देशों की सरकारें कागजी मुद्रा के उपयोग पर राजी हो गईं। इस कागजी मुद्रा के ऊपर जितना उसका मूल्य लिखा होता है, वह उतने की ही मानी जाती है।सरकार द्वारा कागजी मुद्रा पर लिखे मूल्य को देने का वायदा किया जाता है और कोई भी व्यक्ति उससे उतने मूल्य तक की वस्तुएं खरीद सकता है।
लोग किसी मुद्रा या कागजी नोट को इसलिए स्वीकार करते हैं, क्योंकि उन्हें उसको जारी करने वाली सरकार पर विश्वास होता है।रुपयों की अधिक बड़ी राशि कागजी नोटों द्वारा भुगतान की जाती है, क्योंकि सिक्के भारी होते हैं। ये कागजी नोट सरकार द्वारा छापे और चलाए जाते हैं।
अब धीरे-धीरे कागजी मुद्रा की जगह 'क्रेडिट कार्ड्स' (Credit Cards) लेते जा रहे हैं। क्रेडिट कार्ड जितने भी रुपयों की राशि का होता है, उतने रुपया की चीजें या सेवाऐं तुम बाजार से खरीद सकते हो। तुम्हें चीज़ें या सेवाएं देने वाले क्रेडिट कार्ड का कोड नंबर आदि बताकर उनका मूल्य बैंक से प्राप्त कर लेते हैं | क्रेडिट कार्ड अच्छी क़्वालिटी के प्लास्टिक पर छपा होता है ,इसलिए इसे प्लास्टिक मनी(Plastic Money) भी कहते हैं |
क्या आप जानते हो कि इनका चलन कब और कैसे हुआ?
मानव सभ्यता की शुरुआत में जब लोग कोई चीज खरीदना चाहते थे, तब उसके बदले में दूसरी चीज देते थे।
उदाहरण के लिए अगर एक बरतन बनाने वाला कुम्हार किसी किसान से चावल खरीदता, तब उसके बदले में उसे बरतन देता था। किसान को बरतनों की जरूरत पड़ती थी, इसलिए वह उन्हें ले लेता था।
खरीदने-बेचने के इस तरीके को विनिमय प्रणाली (Barter System) कहते थे। इसमें वस्तुओं के बदले वस्तुओं का लेन-देन चलता था। उस काल में वस्तुएं ही धन या मुद्रा के रूप में प्रयोग होती थीं।
जैसे-जैसे व्यापार बढ़ने लगा। विनिमय की यह प्रणाली नई जरूरतों को पूरा करने में असफल सिद्ध होती गई। ऐसी स्थिति में ऐसी मुद्रा की जरूरत महसूस की जाने लगी,जिससे व्यापारिक आवश्यकताओं के अनुरूप खरीदबिक्री की जा सके। क्योंकि वस्तुओं को आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान पर नहीं ले जाया जा सकता था | अधिक मात्रा में वस्तुओं को सुरक्षित रूप से जमा नहीं जा सकता था और भिन्न-भिन्न वस्तुओं का ठीक मल्य निर्धारित नहीं हो सकता था।इसलिए लोगों ने चीजो के खरीदने-बेचने के लिए प्रतीकात्मक वस्तुओं का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया।
अमेरिका के रेड इंडियंस शंख के खोल, फिजी के निवासी ह्वेल मछली के टन उत्तरी अमेरिका के लोग तंबाकू का उपयोग वस्तुओं के लेन-देन के लिए करते थे। प्राचीनकाल में रोम के सैनिकों को वेतन के रूप में नमक दिया जाता था।
मुद्रा (Coins) के रूप में धन कब और किस देश में सबसे पहले प्रचलित हुआ, इस बारे में बिल्कुल सही रूप में कहना कठिन है।
भारत के प्राचीन ग्रंथों में स्वर्ण मुद्रा (सोने का सिक्का) शब्द का उपयोग बार-बार हुआ है।
इससे स्पष्ट है कि ईसा से कई हजार वर्ष पहले भी भारत में स्वर्ण मुद्राओं का उपयोग किया जाता था।
मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई में मिले प्राचीन सुंदर नगरों के अवशेषों और वस्तुओं को देखकर लगता है कि उस समय के भारतीय व्यापारी बड़ी-बड़ी नौकाओं से समुद्री मार्ग द्वारा विदेशों तक व्यापार करते थे।
इसलिए यह कहा जा सकता है कि वे भी किसी न किसी प्रकार की मुद्रा का उपयोग जरूर करते रहे होंगे।
प्राप्त प्रमाणों के अनुसार एशिया में लीडियन्स (Lydians) द्वारा ईसा से 800 वर्ष पूर्व धातुुओ के टुकड़ो का उपयोग मुद्रा के रूप में होता था। कुछ लोगों का विश्वास है कि इससे भी पहले चीन के लोग मुद्राओं का उपयोग करते थे। वस्तुओं की जगह मुद्राओं को सभी लोग पसंद करते थे क्योंकि उन्हें रखना और ले जाना सरल था।
शुरू-शुरू की मुद्राओं का आकार खुरदरा और असमान रूप का था और उनके ऊपर खुरदरी डिजाइन बनी होती थीं। उनका मल्य उस धातु के अनुसार होता था, जिस पर वे बनी होती थीं। ज्यादातर सोने, चांदी और तांबे की धातुओं के सिक्के बनाए ना जाते थे, क्योंकि ये धातुएं मूल्यवान और टिकाऊ होती थीं।
चीन में कागज की मुद्रा का उपयोग 9वीं शताब्दी से शुरू हो गया था, लेकिन यह यूरोप में 17वीं शताब्दी में जाकर विकसित हुआ। इसके बाद धन के लेन-देन को सरल बनाने के लिए भिन्न-भिन्न देशों की सरकारें कागजी मुद्रा के उपयोग पर राजी हो गईं। इस कागजी मुद्रा के ऊपर जितना उसका मूल्य लिखा होता है, वह उतने की ही मानी जाती है।सरकार द्वारा कागजी मुद्रा पर लिखे मूल्य को देने का वायदा किया जाता है और कोई भी व्यक्ति उससे उतने मूल्य तक की वस्तुएं खरीद सकता है।
लोग किसी मुद्रा या कागजी नोट को इसलिए स्वीकार करते हैं, क्योंकि उन्हें उसको जारी करने वाली सरकार पर विश्वास होता है।रुपयों की अधिक बड़ी राशि कागजी नोटों द्वारा भुगतान की जाती है, क्योंकि सिक्के भारी होते हैं। ये कागजी नोट सरकार द्वारा छापे और चलाए जाते हैं।
अब धीरे-धीरे कागजी मुद्रा की जगह 'क्रेडिट कार्ड्स' (Credit Cards) लेते जा रहे हैं। क्रेडिट कार्ड जितने भी रुपयों की राशि का होता है, उतने रुपया की चीजें या सेवाऐं तुम बाजार से खरीद सकते हो। तुम्हें चीज़ें या सेवाएं देने वाले क्रेडिट कार्ड का कोड नंबर आदि बताकर उनका मूल्य बैंक से प्राप्त कर लेते हैं | क्रेडिट कार्ड अच्छी क़्वालिटी के प्लास्टिक पर छपा होता है ,इसलिए इसे प्लास्टिक मनी(Plastic Money) भी कहते हैं |
(When did the practice of currency begin? When did the practice of currency begin in hindi.)
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