सांप रेंगने वाले ऐसे जंतु हैं, जो जमीन के ऊपर और नीचे, पानी में और पेड़ों पर रहते हैं।सांप के पैर नहीं होते। वे छिपकली के समूह में आते हैं। सांप ठंडे रक्तवाले जंतु हैं और संसार के सभी भागों में पाए जाते हैं। इनकी 2400 से भी अधिक किस्में हैं। इन सभी सांपों में केंचुली बदलने का स्वभाव होता है। क्या तुम जानते हो कि सांप केंचुली क्यों बदलते हैं?
सभी जीव, यहां तक कि मानव भी, प्राकृतिक कारणों से होने वाले त्वचा के घिसाव या टूट-फूट के कारण अपनी खाल (त्वचा) बदलते हैं। जमीन पर रेंगने के कारण सांप की खाल कुछ ही महीनों में खराब हो जाती है इसलिए वह समय-समय पर नई खाल बदलता रहता है। इसी को सांप का केंचुली बदलना कहते हैं।
सांप एक से तीन महीने की अवधि में केंचुली बदलता है। नई खाल सांप की पुरानी खाल के नीचे विकसित होती है और जब वह पूरी तरह बन जाती है, तब एक प्रकार का तरल द्रव उन दोनों के बीच में पैदा होता है, जो उन्हें अलग-अलग तथा चिकना रखता है। इस द्रव के कारण उसकी आंखों के आगे एक परदा सा आ जाता है, जिससे वह कुछ देख नहीं पाता।
ऐसे में सांप कहीं छिपकर बैठ जाता है और जब उसे केंचुली बदलनी होती है, तब वह अपने मुंह को किसी खुरदरी जगह से रगड़ता है। इससे होंठों के पास की खाल ढीली हो जाती है, तब सांप खाल के उस हिस्से को किसी चट्टान या पेड़ की टहनी से अटका देता है। इससे उसके मुंह के पास कुछ रास्ता सा बन जाता है। इस स्थिति में वह अपने शरीर को सिकोड़ कर त्वचा से बाहर निकाल लेता है और उसकी त्वचा चट्टान या टहनी से अटकी रह जाती है। केंचुली बदलने की क्रिया में केंचुली का अंदर का भाग बाहर और बाहर का भाग अंदर की ओर हो जाता है, अर्थात त्वचा उल्टी हो जाती है। इस प्रकार त्वचा बदलने में केंचुली कहीं से भी टूटती नहीं है।
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